संपादकीय : देश के छह राज्यों में दो संप्रदायों के बीच पथराव,मुहर्रम के जुलुस पर पथराव क्यों नहीं होता
रामनवमी के मौके पर निकली शोभा यात्राओं को लेकर देश के विभिन्न राज्यों में हिंसा की जो घटनाएं हुई हैं, वे एक सवाल खड़ा करती हैं कि हर साल इसी मौके पर साम्प्रदायिक माहौल खराब करने के पीछे क्या कोई सुनियोजित साजिश रची जाती है? सवाल ये भी है कि संबंधित राज्य की सरकार और स्थानीय पुलिस-प्रशासन ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए पहले से मुस्तैद आखिर क्यों नहीं रहता और दो संप्रदायों के बीच हिंसा भड़कने का इंतजार क्यों करता है?
हावड़ा से लेकर वडोदरा तक और लखनऊ से लेकर संभाजी नगर तक कहीं पथराव हुआ है, तो कहीं उपद्रवियों ने आगजनी करते हुए जो साम्प्रदायिक तनाव पैदा किया है, उसके लिए किसे कसूरवार ठहराया जाए. हिंसा की ऐसी घटनाओं पर राजनीति करते हुए एक-दूसरे पर दोषारोपण करना तो रिवाज बन चुका है .
लेकिन कोई भी राज्य सरकार इसके लिए अपनी चूक मानने को तैयार नहीं होती कि ये उसकी प्रशासनिक विफलता की बड़ी मिसाल है. रामनवमी के मौके पर देश के अलग-अलग हिस्सों में जिस तरह की हिंसा देखने को मिली, वह कई लिहाज से चिंताजनक और निंदनीय है। दो दिनों के अंतराल में देश के छह राज्यों के अलग-अलग शहरों में दो संप्रदायों के लोगों के बीच पथराव, मारपीट, आगजनी जैसी घटनाएं हुईं। महाराष्ट्र के मालाड (मुंबई), जलगांव और संभाजीनगर (औरंगाबाद), पश्चिम बंगाल के हावड़ा और डालखोला, बिहार के सासाराम और नालंदा, उत्तर प्रदेश के लखनऊ, हरियाणा के सोनीपत, गुजरात के वड़ोदरा और कर्नाटक के हासन में हुईं इन घटनाओं को लेकर पुलिस, प्रशासन, स्थानीय संगठनों और राजनीतिक दलों के अलग-अलग स्पष्टीकरण भी आ रहे हैं।
लेकिन कुल मिलाकर ये सब जिस एक तथ्य को रेखांकित कर रहे हैं वह यह है कि इन्हें महज स्थानीय घटनाओं के रूप में नहीं लिया जा सकता, न ही किसी संयोग का परिणाम माना जा सकता है।
हिंसा व आगजनी की बड़ी घटना पश्चिम बंगाल के हावड़ा में हुई है.केंद्र की कथित उपेक्षा को लेकर कोलकाता में दो दिन से धरने पर बैठी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हालांकि उपद्रवियों को पहले से ही चेतावनी देते हुए बड़ा बयान दे दिया था. इसलिये सवाल उठता है कि अगर उन्हें हिंसा भड़कने-भड़काने का अंदेशा अगर पहले से ही था,तो उन्होंने इसे रोकने के पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किये. मुख्यमंत्री के साथ वे राज्य की गृह मंत्री भी हैं,इसलिये उनकी तो दोहरी जिम्मेदारी बनती थी.
साम्प्रदायिक माहौल खराब करने के पीछे क्या कोई सुनियोजित साजिश रची जाती है
धरना-मंच से ही ममता बनर्जी ने शरारती तत्वों को चेताते हुए कहा था, ”किसी गुंडे ने कहा है कि राम नवमी के दिन हम अस्त्र लेकर जुलूस निकालेंगे. मैं रामनवमी के जुलूस को रोकूंगी नहीं, लेकिन अगर अस्त्र निकलें तो सरकार की ओर से कार्रवाई होगी. रमजान का महीना भी चल रहा है और इस दौरान अगर किसी ने भी कोई गलत काम करने की कोशिश की तो उसे बख्शा नहीं जाएगा.” ममता ने कहा, “मैं उन लोगों से अनुरोध करना चाहती हूं जो रामनवमी का जुलूस निकाल रहे हैं. जुलूस निकालें लेकिन शांति से. कृपया मुस्लिम क्षेत्रों में जाने से बचें क्योंकि रमजान चल रहा है.आपको जुलूस निकालने का अधिकार है, लेकिन दंगा करने का अधिकार किसी को नहीं है.” अब सवाल है कि जब पहले से ही अंदेशा था, तो फिर शोभा यात्रा को मुस्लिम इलाकों से गुजरने की इजाजत आखिर किसने और क्यों दी?
हालांकि हावड़ा की हिंसा के बाद ममता ने नाम लिए बिना इसके लिए बीजेपी को ही दोषी ठहराया है. उन्होंने कहा कि वे सांप्रदायिक दंगों को अंजाम देने के लिए राज्य के बाहर से गुंडे बुलाते रहे हैं. उनके जुलूसों को किसी ने नहीं रोका, लेकिन उन्हें तलवारें और बुलडोजर लेकर मार्च करने का अधिकार नहीं है. उन्हें हावड़ा में ऐसा करने का दुस्साहस कैसे हो गया? ममता ने ये भी कहा कि रमजान का भी महीना चल रहा है और इस महीने में मुसलमान कोई ‘गलत’ काम नहीं करते हैं. उन्होंने कहा कि मेरी आंखें, कान खुले हैं. मैं सब कुछ सूंघ सकती हूं. मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से जुलूस निकालते समय मैंने उन्हें पहले ही आगाह कर दिया था कि वे सावधान रहें. मैंने पहले भी कहा है कि रामनवमी की रैली करेंगे तो हिंसा हो सकती है. आज हावड़ा में बुलडोजर भी लेकर गए. रूट बदल दिया, किससे पूछकर रूट बदला? ताकि एक समुदाय को टारगेट किया जा सके.

बीजेपी ने पलटवार करते हुए हावड़ा की हिंसा के लिए पूरी तरह से ममता बनर्जी को ही दोषी ठहराया है
लेकिन बीजेपी ने पलटवार करते हुए हावड़ा की हिंसा के लिए पूरी तरह से ममता बनर्जी को ही दोषी ठहराया है.पार्टी की सोशल मीडिया इकाई के प्रमुख अमित मालवीय ने अपने ट्वीट में लिखा है, “हिंदू भावनाओं की अवहेलना करते हुए, ममता बनर्जी ने रामनवमी पर धरना दिया. फिर हिंदुओं को मुस्लिम क्षेत्रों से बचने की चेतावनी दी क्योंकि रमजान था, यह भूलकर कि हिंदू भी नवरात्र के उपवास कर रहे थे. पश्चिम बंगाल की गृह मंत्री के रूप में वह हावड़ा हिंसा के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं.”
अब सवाल उठता है कि आगामी लोकसभा चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल भी क्या हिंदुत्व की बड़ी प्रयोगशाला बनने की तरफ आगे बढ़ रहा है? राजनीतिक विश्लेषक कमोबेश इसका जवाब हां में ही देते हैं.विश्लेषकों का कहना है कि दरअसल, रामनवमी और हनुमान जयंती उत्सवों के बहाने विश्व हिंदू परिषद और संघ ने साल 2014 से ही राज्य में पांव जमाने की कवायद शुरू कर दी थी.हर बीतते साल के साथ इन आयोजनों का स्वरूप बदला और इन संगठनों की जमीन भी मजबूत होती चली गई.
जाहिर है कि इसका राजनीतिक फायदा बीजेपी को ही मिलना था,जो उसे मिला भी.इसका सबसे बड़ा सबूत है ,साल 2019 के लोकसभा चुनाव जब बीजेपी ने तमाम राजनीतिक पंडितों के अनुमानों को झुठलाते हुए 42 में से 18 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था. जानकार मानते हैं कि बीजेपी की उस बड़ी सफलता में इन आयोजनों की ही अहम भूमिका रही है. बीजेपी को मिली उस कामयाबी के बाद से ही साल दर साल इस मौके पर होने वाले आयोजन और उसकी भव्यता बढ़ने के साथ ही इस त्योहार पर सियासत का रंग और गहरा हुआ है.
बता दें कि बंगाल में जल्द ही पंचायत चुनाव होने वाले हैं.इन चुनावों को ध्यान में रखते हुए वीएचपी और हिंदू जागरण मंच जैसे संगठनों ने इस साल भी बड़े पैमाने पर रैलियां निकालने और राम महोत्सव मनाने का एलान किया है. संघ, वीएचपी और उसके सहयोगी संगठनों ने इस साल रामनवमी यानी 30 मार्च से हनुमान जयंती (6 अप्रैल) तक पूरे राज्य में सप्ताह भर चलने वाले राम महोत्सव के आयोजन का एलान किया है.इस अवसर पर करीब दो हजार इलाकों में भव्य पैमाने पर समारोह आयोजित किए जाएंगे.
अब हमारे सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीश बेशक फटकार लगाते रहें कि धर्म को राजनीति से अलग किये बगैर नफरत फैलाने वाले भाषणों को खत्म नहीं किया जा सकता लेकिन कड़वा सच तो ये भी है कि उन दोनों का ये गठजोड़ ही साम्प्रदायिक हिंसा की आग को कभी बुझने भी नहीं देगा!
ध्यान रहे, पर्व-त्योहार के मौके पर देश के कुछ हिस्सों में तनाव बन जाना या छिटपुट हिंसा की भी खबरें आना कोई नई बात नहीं है। लेकिन ऐसी घटनाएं हमेशा अपवाद के रूप में रही हैं। आम तौर पर हमारे सभी पर्व-त्योहार शांतिपूर्वक और मिल-जुलकर ही मनाए जाते रहे हैं। गौर करने की बात यह है कि पिछले कुछ समय से इस स्थिति में जबर्दस्त बदलाव देखने में आ रहा है।
हनुमान जयंती के मौके पर दस राज्यों से हिंसा की खबरें कई दिनों तक आती रही थीं
पिछले साल रामनवमी 10 अप्रैल को पड़ी थी। तब भी छह राज्यों- गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और गोवा- में हिंसा, पथराव की घटनाएं दर्ज की गई थीं। यही नहीं, इसके कुछ ही दिन बाद हनुमान जयंती के मौके पर दस राज्यों से हिंसा की खबरें कई दिनों तक आती रही थीं। जाहिर है, पर्व-त्योहार पर सांप्रदायिक हिंसा और तनाव अपने देश में नया नॉर्मल बनता जा रहा है।
मुहर्रम के जुलुस पर पथराव क्यों नहीं होता
एक स्तर पर निश्चित रूप से यह कानून व्यवस्था की भी समस्या है। पुलिस और प्रशासन की नाकामी इसका एक अहम पक्ष है। लेकिन बात उतने तक सीमित नहीं है। समस्या का ज्यादा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि हमारे समाज की समरसता में, मिल-जुलकर प्यार से रहने की भावना में निरंतर कमी आ रही है। यह बात हमेशा हिंसा के ही रूप में प्रकट नहीं होती, अक्सर ऐसी प्रवृत्ति के रूप में दिखती है जो शांति भंग न करते हुए भी समाज के अलग-अलग हिस्सों में दूरी बढ़ाने का काम करती है।
उदाहरण के लिए, नवरात्रि समारोहों में अन्य समुदाय के युवाओं को न आने देने की घोषणाओं को लिया जा सकता है। हेट स्पीच इसी का एक और उदाहरण है। ऐसी प्रवृत्तियां तत्काल भले किसी बड़ी अप्रिय घटना का कारण न बनें, दोनों तरफ ऐसी दुर्भावना को जन्म देती हैं, जो अन्य मौकों पर हिंसक घटनाओं को अंजाम देना आसान बना देती है। कानून व्यवस्था की एजेंसियों को ज्यादा चौकस करते हुए समाज में नफरत बढ़ा रही प्रवृत्तियों पर भी अंकुश लगाने की जरूरत है।